वेदों की महिमा
वेदोऽखिलोधर्ममूलम्। समस्त वेद धर्म के मूल हैं।
वेद स्वतः प्रमाण हैं, अन्य सभी शास्त्र परतः प्रमाण हैं
वेद प्रणिहितो धर्मों ह्यधर्मस्तदविपर्ययः।
वेदो नारायणः साक्षात् स्वयंभूरिति शुश्रुम।।
श्रीमद् भागवत षष्ठ स्कंध, प्रथम अध्याय, श्लोक-40
ईश्वरीय वाणी होने कारण वेद साक्षात् नारायण स्वरूप हैं। वह अपौरुषेय हैं किसी पुरुष के द्वारा उनकी रचना नही की गयी है। मन्त्रों में उल्लिखित ऋषि मन्त्र दृष्टा हैं, मन्त्रों के रचयिता नहीं हैं
वेद चारों वर्णों के पुरुष एवं स्त्रियों के लिये, वनवासियों के लिये सभी अपनों के लिये और सभी परायों के लिये हैं। सभी को उनके अध्ययन का पूर्ण अधिकार है चाहे वह किसी धर्म के मानने वाले हों या किसी देश के रहने वाले हों। इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नही है। यह बात यजुर्वेद के अध्याय 26 के द्वितीय मन्त्र में स्पष्ट रूप से कही गयी है।
चत्वारो वा इमे वेदा ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदो ब्रह्मवेद इति।
हिंदू पवित्र साहित्य में मुख्य चार वेद हैं
ऋग्वेद यजुर्वेद, सामवेद, तथा ब्रह्मवेद। यहाँ अथर्ववेद को ब्रह्म वेद कहा गया है क्योंकि इसमें विषेष रूप से ब्रह्म का वर्णन किया गया है।